आइए जानते है कृष्णा कौन है?
क्यों सनातन हिंदू धर्म में भगवान श्री कृष्ण का स्थान सर्वोत्तम है? क्यों भगवान श्री कृष्ण को अवतारी कहा जाता है? क्या हम श्री कृष्ण के महत्ता को जानते है? आइए जानते है भगवान श्री कृष्ण का शास्त्रों में क्या स्थान है ।
Artist- tarun vyash on shuttlerstock
जिन्होंने भगवत गीता स्वयं अपने मुख से बोली हो उन भगवान श्री कृष्ण की महत्ता को क्या हम जानते है? आइए ये जानते है हमारे शास्त्रों और पुराणों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का क्या स्थान है?
“कृष्णा तू भगवान स्वयं" यानी की कृष्णा आप ही स्वयं भगवान है। सर्वप्रथम हम ये समझते है की कृष्णा नाम का क्या अर्थ है? “कृष्ण" शब्द का अर्थ है जो सबसे अधिक आकर्षक है, और “ना" का अर्थ है जो आनंद का सागर है। अर्थात भगवान श्री कृष्ण सबसे अधिक आकर्षक और सबसे अधिक आनंदमय है। आइए जानते है भगवान श्री कृष्ण अपना विस्तार किस तरह से करते है।
- भगवान श्री कृष्ण का एक विस्तार रासलीला में देखने को मिलता है जहां पे उन्होंने अपने 10000 बिलियन प्रतियां बनाई थी। उस समय वहा 10000 बिलियन गोपियां थी और हर एक गोपी के साथ एक एक कृष्ण मौजूद थे।
- भगवान श्री कृष्ण का अगला विस्तार द्वारिका में देखने को मिलता है जहा वो 16108 पत्नियों के साथ अलग अलग स्थानों पर एक साथ उपस्थित रहते है। इसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण मथुरा नरेश, देवकीनंदन और वासुदेव के रूप में अपना विस्तार करते हैं।
आइए अब जानने की कोशिश करते है शास्त्रों के हिसाब से भगवान श्री कृष्ण किस तरह अपना विस्तार किए हुए है। नीचे दिए हुए फ्लो चार्ट से भगवान के कुछ विस्तार को बताने की कोशिश की गई है हालाकि उनका विस्तार तो अनंत है।
A flow chart to understand expansion of krishna
- भगवान श्री कृष्ण का प्रथम विस्तार बलराम जी है। भगवान बलराम के सारे गुण श्री कृष्ण जैसे ही है केवल उसका रंग स्वेत है और भगवान श्री कृष्ण श्याम सुंदर रूप में है।
- भगवान बलराम अपना विस्तार चार स्वरूपों में करते है।
1 वासुदेव
2 संकर्षण
3 प्रदुम्न
4 अनिरुद्ध
वासुदेव जो आगे चलकर राम हुए। संकर्षण लक्ष्मण, प्रदुम्न भरत और अनिरुद्ध शत्रुधन हुए।
संकर्षण जी से पहला विस्तार होता है नारायण स्वरूप में। या हम ये कहे की नारायण भगवान संकर्षण महाराज के ही विस्तार है। भगवान नारायण के बाद दूसरा क्वाड विस्तार होता है जिसमे नारायण अपना विस्तार वासुदेव, संकर्षण, प्रदुम्न और अनिरुद्ध में करते है। जिसमे वासुदेव आत्मा को, संकर्षण अहंकार को, प्रदुम्न बुद्धि को और अनिरुद्ध बुद्धिमत्ता को प्रदर्शित करते है।
- उसके बाद संकर्षण जी का पुनः विस्तार होता है महाविष्णु में। महाविष्णु के स्वास से ही इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और विनाश होता है।
- महाविष्णु का विस्तार होता है गर्भोदक्षाए विष्णु में। गर्भोदक्षाएं विष्णु प्रत्येक ब्रह्माण्ड के नेतृत्व करते है।
- गर्भोदक्षाय विष्णु अपना विस्तार करते है क्षीरोदक्षैये विष्णु में। जो कण कण का नेतृत्व करते है।
संकर्षण के ये तीनों विस्तार ( महाविष्णु, गर्भोदक्षाय विष्णु, क्षीरोदक्षैये विष्णु) ही भगवान के पुरुषावतार कहे जाते है। ये अवतार बिलकुल वैसे ही है जैसे एक प्रधानमंत्री के बाद मुख्यमंत्री और एक मुख्यमंत्री के अंतर्गत मंत्री होते है।
इसके पश्चात क्षीरोदक्षैये विष्णु अपना विस्तार कुछ इस तरह से करते है
- लीला अवतार
- गुण अवतार
- आवेश अवतार
- युग अवतार
- मनवंतर अवतार
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- लीला अवतार - श्रीमद्भगवताम में भगवान के 25 लीला अवतारों का उल्लेख किया गया है। कृष्ण दौपायन वेद व्यास भी भगवान के लीला अवतारों में एक है
- गुण अवतार- ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी भगवान के गुण अवतार माने जाते है। जहा पे ब्रह्मा जी रजो ,शिवजी तमो और विष्णु जी शतो गुण के स्वामी है। अगर आम भाषा में बोला जाए तो ब्रह्मा बनाने का कार्य करते हैं शिवजी नष्ट करने का कार्य करते हैं और विष्णु जी मेंटेन करने का काम करते हैं।
- आवेश अवतार- आवेश अवतार दो प्रकार के होते हैं पहला भगवत आवेश और दूसरा शक्ति आवेश। भगवत आवेश जिसमें भगवान का स्वयं आवेश होता है उसे हम भगवत आवेश कहते हैं इस आवेश में भगवान कपिल और भगवान ऋषभदेव आते हैं। जबकि शक्ति आवेश में भगवान की शक्ति का आवेश होता है इस आवेश के अंतर्गत जैसे नारद मुनि, चार कुमार,अनंत देव और परशुराम आते हैं। ब्रह्मा जी भी भगवान के शक्ति आवेश अवतारों में गिने जाते हैं। इसका मतलब यह है कि ब्रह्मा जी भगवान के गुण अवतार और शक्ति आवेश अवतार दोनों में आते हैं।
Narad muni & parshuraam ji as shakti awesh avtaar
- युगवतार- युगवतार के अंतर्गत चार युग आते हैं सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग। सतयुग में भगवान का हंस अवतार होता है जिसमें भगवान ध्यान लगाना सिखाते हैं इस युग में सभी जन परमहंस थे। त्रेता युग में भगवान का यज्ञ अवतार होता है। जिसमें भगवान यज्ञ करने के लिए प्रेरणा देते हैं। द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का अवतार होता है जिसमें वह विग्रह पूजा करने की प्रेरणा देते हैं। इसके पश्चात कलयुग में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु नाम संकीर्तन करने की प्रेरणा देते हैं। युग अवतार में भगवान के सभी अवतार एक मनुष्य को आत्मज्ञान देने के लिए होते है।
- मन्वंतर अवतार - हमारे सनातन धर्म में मन्वंतर की संख्या 14 है यह मन्वंतर अवतार कॉस्मिक टाइम से संबंधित है।
Virat form of shree krishna at mahabharat
निस्कर्ष
हालांकि भगवान श्री कृष्ण का विस्तार अनंत है लेकिन हमारे शास्त्रों के हिसाब से कुछ अवतारों का उल्लेख किया गया है । सभी अवतारों को वर्गीकृत करके मैंने आप सबके समक्ष प्रस्तुत किया है। इन सभी अवतारों का मूल अगर हम समझने की कोशिश करें तो वह भगवान श्री कृष्ण के ही ओर से हैं। यह जितने भी अवतार हैं यह सभी के सभी भगवान श्री कृष्ण से ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निकले हुए हैं। इसीलिए भगवान श्री कृष्ण को अवतारी बोला जाता है क्योंकि वह इन सारे अवतारों के स्रोत हैं। हालांकि भगवान श्री कृष्ण किसी तत्व को प्रदर्शित तो कर सकते हैं लेकिन भगवान का स्वयं एक भगवत तत्व है। वैसे देखा जाए भगवान श्री कृष्ण के अनंत अवतार हैं लेकिन उन सभी अवतारों में जो सर्वश्रेष्ठ है जो परम है वह है भगवान श्री कृष्ण। इसीलिए श्रीमद्भागवत गीता की महत्ता इस वजह से और बढ़ जाती है क्योंकि इसको बोलने वाले स्वयं सर्वश्रेष्ठ परम भगवान श्रीकृष्ण ही है। भगवान श्री कृष्ण कोई अवतार नहीं है बल्कि वह सभी अवतारों के मूल स्रोत हैं। इसीलिए इन सभी भगवत तत्वों में जो सबसे ज्यादा ओरिजिनल तत्व है वह है भगवान श्री कृष्ण।
श्रीमद् भागवतम् के अद्भुत श्लोकों में से एक है जो श्री कृष्ण के पूर्ण भगवान् होने का प्रमाण देता है।
एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्’ (भा० १/३/२८) अर्थात कृष्णा आप स्वयं भगवान हैं।
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अंकित सिंह
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